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विद्रूप विचारधाराएं और दिशा हीन क्रांतियों का दौर

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देश के अंदर भाषाई, क्षेत्रीयता, जाति,धर्माधारित वर्गीकरण करना भारत की अखण्डता एवम संप्रभुता पर सीधा और घातक हमला है . देश आज एक ऐसे ही संकट के करीब जाता नज़र आ रहा है जाने क्या हो गया है कि  हम  कहीं भी कुछ भी सहज महसूस नहीं कर पा हैं . अचानक नहीं सुलगा असम अक्सर पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में सोचता हूं रोंगटे खड़े हो जाते हैं वहां तीसेक साल से घुट्टी में पिलाई जा रही है कि इंडियन उनसे अलग हैं.साल भर पहले दिल्ली प्रवास के समय मित्रों की आपसी चर्चा के दौरान जब इस  तथ्य का खुलासा हुआ तो हम सब की रगों में विषाद भर गया मेरे मित्र ललित शर्मा और पाबला जी सहित हम सब घण्टों इस बात को लेकर तनाव में रहे थे. बस इतना ही हम कर सकते थे सो कर दिया पर जिनके पास ऐसी सूचना बरसों से है वे इस विषय में शांत क्यों हैं.. क्या हुआ हमारी स्वप्नजीवी सरकार को कि भारत को तोड़ने की कोशिशों का शमन करने कोई सख्त कदम नहीं उठा पा रही. उनकी क्या मज़बूरियां हैं इसका ज़वाब मांगना अब ज़रूरी हो गया है.                     विद्रूप-विचारधाराएं भाषाई आधार पर गठित राज्य की सड़ांध है. अब देखिये यू.पी. बिहार के लोगों को हिरा