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पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआं,पण्डित भया न कोय ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !! | ||
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वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये तू कितने सर अब क़लम करेगा, ये जो कटा तो वो इक उठा है *********************** तेरी हक़ीक़त तेरी तिज़ारत तेरी सियासत, तुझे मुबारक़-- नज़र में तेरी हैं हम जो तिनके,तो देख ले अब हमारी ताक़त !! कि पत्ता-पत्ता हवा चली है.. तू जा निकल जा बदन छिपा के !! वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये *********************** थी तेरी साज़िश कि टुकड़े-टुकड़े हुआ था भारत, वही जुड़ा है तेरे तिलिस्मी भरम से बचके, हक़ीक़तों की तरफ़ मुड़ा है....!! अब आगे आके तू सर झुक़ा ले..या आख़िरी तू रज़ा बता दे ..? *********************** ये जो हक़ीक़त का कारवां हैं,तेरी मुसीबत का आसमां है कि अपनी सूरत संवार आके, हमारे हाथों में आईना है..! अग़रचे तुझमें नहीं है हिम्मत,तो घर चला जा..या मुंह छिपा ले ! *********************** |
19.8.11
ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!
15.8.11
लोकतंत्र को आलोक-तंत्र बनाने की कवायद
12.3.11
ललित जी डर के आगे जीत है भई ..!!
बताईये दबंग कौन..? |
हां | 7 (19%) |
नहीं | 8 (22%) |
क़दापि नहीं | 21 (58%) |
तटस्थ | 0 (0%) |
2.2.11
5.2.09
4.10.08
बन्दर और चश्मा
चाहे अनचाहे
जीने के लिऐ
जी हाँ इन्हीं साँसों के साथ
अंतस मे मिल जाती है
विषैली हवाओं में पल रहे विषाणु
उगा देते हैं शरीर में रोग
इसे विकास कहते हैं
जो जितना करीब है पर्यावरण से
उतना सुरक्षित है कम-अस-कम
बीमार देह लेकर नहीं मरता
पूरी उम्र मिलती है उसे
मान के सीने से चिपका बंदरिया का बेटा
कल मैंने उसे चूसते देखा है
"मुनगे की फली "
बेटी ने कहा :-"पापा,आज पिज्जा खाना है...!"
मैंने कहा :-"ज़रूर पर बताओ बन्दर का बेटा,
क्या खा रहा है ? "
झट जबाब मिला:-"मुनगा "
आप को पसंद नहीं है॥?
न
तो आपने मुझे चश्मा लगाए देखा है न ?
हाँ,पापा देखा है.....!पर ये सवाल क्यों..........?
मेरे अगले सवाल पे हंस पडी बिटिया
''बन्दर,को कभी चश्मा लगाऐ देखा बेटे...?''
पापा.ये कैसा सवाल है
बेटे,जो प्रकृति के जितना पास है उतना ही सुरक्षित है ।
इसका अर्थ बिटिया कब समझेगी
इस सच से बेखबर चल पङता हूँ ,
बाज़ार से पिज्जा लेने
[ कविता:मुकुल/चित्र:प्रीती]
29.5.08
"गिद्ध रहें न रहें गिद्धियत शेष रहेगी...!!"
sachin sharma ने कहा 80 लाख थे, 10 हजार रह गए!भईया इनकी जनरेशन की अब कोई ज़रूरत नहीं हैं । आदम जात में इनकी प्रवृत्ति ज़िंदा रहेगी ही । मौत बनते राजमार्ग! भी सच है राज के रास्ते चलते लोगों की आत्म-सम्मान,संवेदना,ईमान,सब कुछ मर जाता है । ज़िंदा रहती है केवल लिप्सा । लाशों के ढेर पर "राज" निति की बुनियाद इक एतिहासिक सत्य है।
इब्ने-इन्साँ ने खूब कहा -
" अपनी ज़ुबां से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग,
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का "
SUYOG PATHAK ने गया उदय प्रकश जी का गीत स्वयम में ब्रह्म का एहसास दिलाता है।
1.4.08
*KHAZANA*: "भेडाघाट के बच्चे"
अभी भी ५ रूपए के लिए धुआं धार में कूद जाते हैं । आप सिक्का फैंकिए वे उठा के लाते हैं.....?
23.3.08
15.3.08
एक लघु कथा सा दृश्य
सच मुझे ईश्वर ने जीते जी अपने मरने का दु:ख सह सकने की ताकत न दी होती तो मैं उस बेचारे मूर्ख को भी आइना दिखा देता और होता ये कि -"मुझे नौकरी से हाथ धोना पङता , मेरे का बच्चों का स्कूल छूट जाता , मैं कोर्ट कचहरी के चक्कर में उलझ जाता । धीमे-धीमे मेरे करीब आता न्याय .... और ज़लालत से मिलाती निजात । लेकिन तब तक मैं दुनियाँ से बीस बरस पीछे चला जाता और आगे होती चाटूकारों की फौज सो मैं चुप हूँ ......... लेकिन उसको आइना तो दिखाना ही है... जो मुझे आइना दिखाता है !
कितनी वाहियाद जिन्दगी जीते हैं ये लोग जो सिरमौर होते हैं जो कितनी गंदी सोच लेकर पैदा किया होगा इनके माँ-बाप ने , बकौल मित्र प्रशांत कौरव :-"ये लोग शरीरों की रगड़ का रिज़ल्ट हैं।"
ये कुछ तनाव के कारण पैदा हुए लोग है ..... जो कभी भी तनाव बोने में पीछे नहीं हैं।
इनको तो जमा होना था तानाशाह के इर्द गिर्द ....?
देखिए हर कोई अपनी बाजीगरी के चक्कर में दूसरे की दुर्गति करता नज़र आ रहा है । ऊपर वालों के तलुए .... नीचे वालों को जूते के नोक पर रखिये इस दौर में ये धंधा खूब पनप रहा है..... सब जानते हैं । यदि कोई चाहे भी तो इससे निजात नहीं पा सकता ?
11.2.08
10.2.08
प्रेमिका और पत्नी
प्रिया बसी है सांस में मादक नयन कमान
छब मन भाई,आपकी रूप भयो बलवान।
सौतन से प्रिय मिल गए,बचन भूल के सात
बिरहन को बैरी लगे,क्या दिन अरु का रात
प्रेमिल मंद फुहार से, टूट गयो बैराग,
सात बचन भी बिसर गए,मदन दिलाए हार ।
एक गीत नित प्रीत का,रचे कवि मन रोज,
प्रेम आधारी विश्व की , करते जोगी खोज । ।
तन मै जागी बासना,मन जोगी समुझाए-
चरण राम के रत रहो , जनम सफल हों जाए । ।
दधि मथ माखन काढ़ते,जे परगति के वीर,
बाक-बिलासी सब भए,लड़ें बिना शमशीर .
बांयें दाएं हाथ का , जुद्ध परस्पर होड़
पूंजी पति के सामने,खड़े जुगल कर जोड़
इस सप्ताह वसंत के अवसर पर मेरी भेंट स्वीकारिए
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
राजनारायण चौधरी
गिरीश बिल्लोरे मुकुल बस एक चटका लगाने की देर है॥
नीचे चटका लगा के मुझ से मिलिए
गिरीश बिल्लोरे ''मुकुल''
Wow.....New
धर्म और संप्रदाय
What is the difference The between Dharm & Religion ? English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...
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