न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका- जिसे तपा के जांचा जाए.
जितनी बार बिलख बिलख के रोते रहने को मन कहता उतनी बार मीत तुम्हारा भोला मुख सन्मुख है रहता....! ************************* सच तो है अखबार नहीं तुम , जिसको को कुछ पल बांचा जाये. न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका- जिसे तपा के जांचा जाए. मनपथ की तुम दीप शिखा हो यही बात हर गीत है कहता जितनी बार बिलख बिलख के ............... ************************* सुनो प्रिया मन के सागर का जब जब मंथन मैं करता हूं तब तब हैं नवरत्न उभरते और मैं अवलोकन करता हूँ हरेक रतन तुम्हारे जैसा.. ? तुम ही हो ये मन है कहता. जितनी बार बिलख बिलख के ............... *************************