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25.7.12

वो सोचता है- काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं..!



                                     उस दिन शहर के अखबार समाचार पत्रों में रंगा था समाचार उसके खिलाफ़ जन शिकायतों को लेकर हंगामा, श्रीमान क के नेतृत्व में आला अधिकारीयों को ज्ञापन सौंपा गया ? नाम सहित छपे इस समाचार से वो हताशा से भरा  उन बेईमान मकसद परस्तों को  कोस रहा था  किंतु कुछ न कर सका राज़ दंड के भय से बेचारगी का जीवन ही उसकी नियति है. 

एक दिन वो एक पत्रकार मित्र से मिला और पेपर दिखाते हुए उससे निवेदन किया -भाई,संजय इस समाचार में केवल अमुक जी का व्यक्तिगत स्वार्थ आपको समझ नहीं आया ? 

संजय-समझ तो आया आया भाई साहब किंतु , मैं क्या करुँ पापी पेट रोटी का सवाल है जो गोल-गोल तभी फूलतीं हैं जब मैं अपने घर तनखा लेकर आता हूँ…..!
वो-तो ठीक है ऐसा करो भइयाजी,मेरी इन-इन उपलब्धियों को प्रकाशित कर दो अपने लीडिंग अखबार में !
फ़िर उसने   अपनी उपलब्धियां गिनाईं जिन्हैं   सार्वजनिक करने से कल तक शर्माते था . उसकी बात सुन कर संजय ने कहा  भैयाजी,आपको इन सब काम का वेतन मिलता है ,कोई अनोखी बात कहो जो तुमने सरकारी नौकर होकर कभी की हो ?
वो -अनोखी बात…….?
संजय ने पूछा -अरे हाँ, जिस बात को लेकर आपको सरकार ने कोई इनाम वजीफा,तमगा वगैरा दिया हो….?
वो -तमगा ईनाम सबसे दूर मैं  अर्र याद आया भाई,मेरी प्लान की हुई योजनाओं को सरकार ने लागू किया 

संजय:-इस बात का प्रमाण,है कोई !

वो:-……………..?

संजय ने जोर देकर पूछा -बोलो जी कोई प्रमाण है ?नहीं न तो फ़िर क्या करुँ , कैसे आपकी तारीफ़ छापूं भैया जी न  
वो- संजय तारीफ़ मत छापो मुझे सचाई उजागर करने दो आप मेरा वर्जन ले लो जी ये सम्भव नहीं है,मित्र,आप ऐसा करो कोई ज़बरदस्त काम करो फ़िर मैं आपके काम को प्राथमिकता से छाप दूंगा जबरदस्त काम …..?
 संजय-अरे भाई,कुत्ता आदमीं को काटता है कुत्ते की आदत है,ये कोई ख़बर है क्या ?,मित्र जब आदमी कुत्ते को काटे तो ख़बर बनातीं है .तुम ऐसा ही कुछ कर डालो यह घटना मेरे जीवन की अनोखी घटना थी  जीवन का यही टर्निंग पाइंट था वह घायल आदमी निकल पडा कुत्तों की तलाश में . पग पग पर कुत्ते ही मिले थे उसको सोच भी रहा था.. सोच काट लूं साले कुत्तों को और खबर बन जाऊं..!
            किंतु   कोई उसके मन को बार बार सिर्फ़ एक ही बात कह रहा था "भई तुम तो आदमीयत मत तजो ! वो कौन था जो उसे यह सिखा रहा है बेचारा उसी की तलाश में है.

8.2.12

ख़बर नवीसों की नज़र में खबर है..?

साभार: इस ब्लाग से
                  फ़रवरी का महीना आते ही बादलों ने आकाश छोड़ दिया और एकाध दिन के बाद पत्तों ने बिना किसी पूर्व नोटिस के पेड़ों का साथ छोड़ दिया. कुल मिला कर बसंत ने दस्तख दे दी अचानक आए मौसमी बदलाव पे किसी अखबार ने कहा-"उफ़ निरंकुश पारा बिना बताए अचानक ऊपर उठ गया "
पढ़ने वालों को लगा होगा कि बदतमीज़ पारे को इतनी भी तमीज़ नहीं कि   ससुरा पारा उस  अखबार के मेज-वासी खबर नसीब  की नज़र में कोई गुस्ताखी कर चुका हो.
                एक दौर था कि कोई अच्छी बात खबर बनती थी. और अब जब तक तीन-चार साल का बच्चा आपके बाजू में बैठा पोर्न का अर्थ न पूछने लगे  तब तक हज़ूर खबरिया चैनल चिल्ला चिल्ला के बताते रहेंगे-"कर्नाटक का मंत्री पोर्न क्लिप देखते पाया गया.."
बात पंद्रह बरस पुरानी है  कुत्ता एक आदमी को काट चुका था दूसरे की ओर भागा तभी एक आम आदमी ने कुत्ते के मालिक को चिल्लाकर खबर दी -"ज़नाब,अपने कुत्ते को सम्हालिये वरना...."
मालिक ने झट पुकारा-’भोलू, वापस आ ..’
भोलू तो धर्मराज के ज़माने का वफ़ादार था वापस आया दुम हिलाई.. मालिक ने हर आदमी से माफ़ी मांगी जिसे भोलू ने काटा था उसका तो इलाज़ भी कराया.. बात सहजता से निपट गई.. मालिक को कुत्ते की परवरिश का तौर तरीक़ा समझ में आ गया.
       पंद्रह बरस बाद एक पावर-फ़ुल मालिक के कुत्ते के काटने से कई बच्चे घायल हुए खबर न थी उस डेस्क-ब्रांड खबरची के लिये मैने कहा -"भईये.. ऐसी खबर तुमको छापना तो चईये.."
  "ये तो रोजिन्ना की बात है मुकुल बाबू कुत्ते की प्रकृति ही काटना है आपके मुहल्ले में किसी इंसान ने किसी कुत्ते को काटा हो तो बताओ छाप देता हूं..!!"
              अज़ीबोगरीब मापदण्ड हो गये हैं.. खबरवालों के लिये कल ही की तो बात है... नर्मदा जयंति मनाने वालों में वे शुमार न थे जो बारहों महीने बिना कैमरामैन के बग़ैर ग्वारीघाट के तटों को जितना हो सकता है साफ़ करतें हैं. वे भाषण नहीं देते वे गीत एलबम भी नहीं बनाते.. हां सच है वे किसी फ़ोटोअग्राफ़र से फ़ोटो भी नहीं खिंचवाते वे तो सुबह से शाम तक रोटी का इंतज़ाम करते हैं शाम होते होते "माई के घाट" पर हमारे-आपके द्वारा फ़ैलाई गंदगी को साफ़ कर आते हैं..
    बूढ़े किसन से हमने पूछा -"दादा, दूसरों का कचरा आप इस उम्र में काहे उठाते हो..?"
       किसन ने कहा था-"कचरा दूसरे का हो तो हो माई तो अपनी है न.. बाबू...?"
  अक्सर विज़न के अभाव में ऐसी कोशिशें नेपथ्य में चली जाती हैं..
                लोग आज़ सकारात्मकता देख भी नहीं पाते
      

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