6.1.18

सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे 97% युवा डीआरडीओ क्या है नहीं जानते

रिपुसूदन अग्रवाल  यंग इसरो साईंटिस्ट विद  ग्रेट जबलपुरियन एक्टिविस्ट 

आज वाट्सएप के  एक समूह में में ग्रेट जबलपुरियन एक्टिविस्ट भाई अनुराग त्रिवेदी ने एक पोस्ट डाली पोस्ट हालांकि वे मुझे बता चुके थे बालभवन में आकर की सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे  97% युवा  डीआरडीओ क्या है नहीं जानते . मुझे भी ताज्जुब हुआ था पर मुझे मालूम है कि और लोगों की तरह गप्पाष्टक नहीं सुनाते . सो उनकी पोस्ट उनकी शैली में ही यथावत पोस्ट कर के मुझे भीषण तनाव के बीच सुखानुभूति हो रही है . सुधीजन जानें तो कि जबलपुर का जबलपुर ही रह जाना कितना चिंता एवं चिन्तन का मामला है ...............  तो ये रही अनुराग जी की व्यथा ..   कल अग्रवाल स्टेशनर्स में आगामी आयोजित ईवेंट के फॉर्म प्रिंट करवा रहा था। दूकान में संचालक युवा के साथ लम्बा दुबला सा हल्के बाल बिखरे से बेहद शालीन विनम्र बच्चा सहयोग कर रहा दूकान संचालन में । प्रिंट फॉर्म होते होते बँटने भी लगे। 

   ठंड जोरदार थी पर मार्कट में देर रात 11 बजे तक स्टेशनरी की ही दूकान बस खुली।  लोग हाथों में ऊनी ग्लब्ज़ कानों में पट्टी उस पर ऊनी टोपे के उपर मफलर भी दटाये थे। 
   वह बच्चा सहज था पतली सी जैकट पहने और संचालक तो हाफ स्वेटर पहने। 
-" टेम्प्रेचर छः के नीचे पहुँच गया लगता !" उस लडके ने संचालक को बोला।

मुझे इक डाक्यूमेंट फ़ाइल बनानी थी। लैप टॉप पर फ़ाइल खोल टाइप करने लगा। असहज होने के कारण सेल फ़ोन पर ड्राफ्ट करने लगा तभी अंकित (दुकान संचालक ने कहा -" अनुराग भैया मैं बता रहा था न कि मेरा इक क्लोज फ्रैंड इसरो में है ।" 
-" हूँ ....तो ?" सर नीचे किये मैंने जबाब में कहा क्योंकि ध्यान पूरा टेक्स्ट फॉर्मेट में था। 
-" ये वही है !" 
सुनते ही मैं अदब से उठा और हाथ मिला कर उसे उपर से नीचे देखा। लगभग घंटे भर से तो देख ही रहा था कि वह मुझे हुए व्यावसायी की तरह सबसे विनम्र हो कर डील कर रहा जबकि इसको पहले कभी नहीं देखा अंकित की दूकान में। 
-" great to see you sir !" मेरे मुंह से निकला और फिर कहा -" कुछ दिन पहले जबलपुर में सौ स्टूडेंट को  एक्स डीआरडीओ चेयरमैन से मिलवाया और जानकार शर्मिंदा हुए कि सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रही पीढी डीआरडीओ क्या है नहीं जानती । पूछने पर सिर्फ तीन हाथ उठे।" 
उस युवा को देखकर मैं लगभग भीतर से गुदगुदाने सा अनुभव कर रहा था। उसी खुशी में कहा -"मैं कैसे इस्तकबाल करूं आपका सर ? आप तो मरी हुई आशा को जन्म दे रहे। क्योंकि ..कहीं न कहीं लग रहा था जबलपुर सचमुच चेतना शून्य है।" मुझे लगा ज्यादा गम्भीर बात कह दी वह तो सन्दर्भ भी न समझा हो। पर पल भर को रुक कर पूछा -"आपने तवा देखा डोसा बनाने वाले का?"

उसने सहमती में मुंडी हाँ में हिलाई।
-" गर्म हुआ या नहीं जैसे कुक छींटे मारता है न ..वैसे ही आपने छींटे मार कहा है उम्मीद इतनी भी नहीं मरी। ..क्या नाम है आपका?" 
-" रिपु ...जी.. रिपुसूदन अग्रवाल !" 
-"9 जनवरी तक हो जबलपुर में ?"
-" नहीं ...मैं 7 जनवरी को जा रहा हूँ ...क्यूँ ?" 
पेपर बढाते हुए। ईवेंट का अनूठा प्रारूप बतलाते कहा
-" इस ईवेंट में कई बच्चे और बहुत सारे अभिभावकों को आमंत्रित किया आप जैसे प्रतिभावान युवा न केवल बच्चों बल्कि उनके पेरेंट्स के लिए प्रेरणा के स्रोत हो सकते।"
मैंने उसे समझाते कहा -" मेरा मानना है interaction ढेरों reference देते जो goal determination में help करते ऐसे stand !" 
-" जी मॉडल हाई का पढ़ा हूँ । अपनी स्कूल जाता हूँ और बच्चों से मिलता हूँ । उनसे बातें करता हूँ।" मेरी बात को बीच में रोकते उसने जबाब दिया। सुनते ही मन ही मन दुआएं उसके और उसके पेरेंट्स के लिए निकली । मुझे लगा वो मुझसे अब रूहानियत में बेहद बड़ा है। 
रिपु ने कहा -" बच्चे अक्सर सोचते कि जो पढ़ रहे उसका कोई use नहीं। मैं उनसे कहता कुछ भी पूछो मैं practical daily routine में उसका use बताऊँगा।"
मैंने भी उससे कई प्रश्न पूछे और उसने समझाना लगभग किसी परिपक्व शिक्षक की तरह शुरू किया। 
असल ऋण चुकता यदि किसी को करना इससे बेहतर इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। नगर जिधर नकली दबंगाई के अभ्यास युवाओं को देता फिरता और कुर्ताधारी, टीकाधारी चालीस पचास युवाओं को पीछे लिए घूमते। 
   नगर की होटलों पान की दुकानों आहतों में जो यारों की यारियाँ फिकरे कसते मिलती वो दशकों पीछे धकेल रहे नगर को प्रदेश को देश को। 
   ऐसी गैरजिम्मेदार नागरिकता कभी स्मार्ट नहीं हो सकती किन्तु रिपुसुदन अग्रवाल ( युवा साइंटिस्ट) सुधीश मिश्रा ( डायरेक्टर ब्रह्मोस , डीआरडीओ) चन्द्रशेखर विश्वकर्मा( पूर्व प्रचार्य, मिलट्री कालेज देहरादून) रजवंत बहादुर सिंह ( पूर्व अध्यक्ष कर्मिक प्रतिभा प्रबंधन विभाग, डीआरडीओ)  के साथ युवा रुद्राक्ष पंकज अभिनव सारांश वीरेंद्र प्रदीप हनुमान यशा कविता इन्द्री पूजा शुभेन्दु अनुराग चतुर्वेदी विवेक शर्मा से अनगिनत उदाहरण जो अलग विधाओं में लगे पड़े।
मुझे देश पर भाषण सुनने देने में दिलचस्पी न रही न रहेगी क्योंकि साफ दिख रहा असल नगर की प्रबुद्धता तो आत्मप्रशंसा आत्ममुग्धता में माटी पलित किये भविष्य को। जीवट कर्मठ व्यक्तित्व और सकारत्मक ऊर्जा से भरे ये लोग जो बिन किसी बड़े गाजे बाजे मंच प्रपंच माला विमला के अपना काम करते।
     सोशल मीडिया में झाडू पकड़े या गाय को चारा खिलाते पतलून में सिलवट भी न पड़े क्रीज भी खराब न हो और विश्वास दिलाते समाज सेवा हो रही तो यह स्वच्छता का ढिंढोरा कर्जों में लाद देगा।
   मुझे माँ रेवा के वे भक्त सच्चे हिन्द लगेंगे जो आटे की लुई लिये बेठें न कि वो जो आरती कर घर की पूजा हवन कचरा का विसर्जन आस्था से करने माँ नर्मदा के गाल पर तमाचा जड़ने आते। 

    

अनुराग त्रिवेदी एहसास 
लेखक एक्टिविस्ट


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