10.6.15

दो दिन की लघुकथा


पहला-दिन
रत्तू भिखारी बहुत देर तक चीखता चिल्लाता रहा .......... पॉश कालोनी में दो दिनों से मिला तो पर पेट भरने के लिए पानी अधिक पीना पड़ा था आज पॉश कालोनी में मिलने की उम्मीद जो थी . रंग बिरंगे परन्तु बड़े बड़े गेट थे कि खुलने का नाम न ले रहे थे . जिस  गेट के सामने पहुँचा किसी दरवाज़े से सफ़ेद झक्क वाला कुता भुक्क भुक्क कर भगाता नज़र आया तो किसी गेट पर बड़ी नस्ल वाले कुत्ते ने दुत्कारा ... पर भिखारी ने रटी-रटाई पुकार लगानी न छोड़ी .
निरंतर पुकार रहा था सीता मैया राधा जी , देवकी मैया भूखे को भोजन दे दे माँ .. दो दिनों का भूखा हूँ माँ ....... सीता ........... देवकी दोरे खोल लो अब मैया जी ......
एक भी दरवाज़ा न खुला ...... थक हार कर बेचारा भिखारी मंदिर के आहाते में सो गया .... रात कोई आया सपने में . क्या समझाया रत्तू को मालूम होगा अपन को कुच्छ नई मालूम..    
दूसरा-दिन
आज भिखारी पूरे उत्साह से उठा मंदिर के पास वाले बंगले के पास चिल्लाया....... देवी श्री देवी भगवान तुम्हारा भला करेगा .
भुक्क-भुक्क करने वाले कुत्ते को डपटते हुए प्रौढ़ा ने नौकर को आवाज़ लगाईं .... बहादुर एक पेपर प्लेट में पोहे जलेबी ले आ ..
अगले गेट पे ..... रत्तू ने पुकार देवी प्रियंका कुछ दे दो दो दिन का भूखा हूँ ..
इस पुकार ने उसे गज़ब परोसा दिलवाया. जिस घर के सामने उसने कंगना रनौत पुकारा उधर तो उसे रोटी, पानी, पचास रुपए मिले ...

एक घर के सामने गलती से आलिया क्या पुकार बैठा......... घर की तरुणियों ने जिस कदर डपटा कि रत्तू की हवा निकस गई.........    

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