हिंदी ब्लागिंग पर प्रतिबंध और ब्लागर्स की ज़िम्मेदारी...!

                                        
समीरलाल
 हिंदी ब्लाग जगत चिंतित है. समीरलाल चिंतित होकर बज़्ज़ पर पूछ रहे हैं:-"बेचारा निरीह हिन्दी ब्लॉगर- कानून के घेरे में लपेटा    जायेगा....अधिकतर तो आत्म समर्पण करके निकलना पसंद करेंगे." तो नुक्कड़ पर चिंतित हैं अपने ललित शर्मा जी कह रहे है मौलिक-अधिकार का हनन है यह..  संजीव शर्मा जी ने जुगाली पर  बताया कि:- क्या और कैसे होगा प्रतिबंध ब्लागिंग पर . कुल मिला कर सारे हिन्दी ब्लाग जगत में एक सनसनी अभिव्यक्ति पर  लगाम कसने की कयावद वह भी हिंदी ब्लागर्स की अभिव्यक्ति पर हिंदी-ब्लागर्स बकौल संजीव :-"हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओँ के ब्लॉग तो अभी मुक्त हवा में साँस लेना सीख रहे हैं और उन पर प्रतिबन्ध की तलवार लटकने लगी है.दरअसल बिजनेस अखबार ‘इकानॉमिक्स टाइम्स’ के हिंदी संस्करण में पहले पृष्ठ पर पहली खबर के रूप में छपे एक समाचार के मुताबिक सरकार ब्लाग पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास कर रही है.यह प्रतिबन्ध कुछ इस तरह का होगा कि आपके ब्लॉग के कंटेन्ट(विषय-वस्तु) पर आपकी मर्ज़ी नहीं चलेगी बल्कि सरकार यह तय करेगी कि आप क्या पोस्ट करें और क्या न करें.सरकार ने इसके लिए आईटी कानून में बदलाव जैसे कुछ कदम उठाये हैं. खबर के मुताबिक सरकारी विभाग सीधे ब्लॉग पर प्रतिबन्ध नहीं लगाएंगे बल्कि ब्लॉग बनाने और चलाने का अवसर देने वालों की नकेल कसी जायेगी. नए संशोधनों के बाद वेब- होस्टिंग सेवाएं उपलब्ध करने वालों,इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और इसीतरह के अन्य मध्यस्थों को कानून के दायरे में लाया जा रहा है.प्रतिबंधों की यह सूची बीते माह जारी की गई थी और इसपर आम जनता,ब्लागरों और अन्य सम्बंधित पक्षों की राय मांगी गई थी."
             
 बिजनेस अखबार ‘इकानॉमिक्स टाइम्स’ के हिंदी संस्करण की यह खबर कितनी सही है इस पर सरकार की ओर पुष्टि ले लेना भी ज़रूरी है. अभी कुछ भी कयास लगाना ज़ल्दबाज़ी है पर इसका आशय यह नहीं कि हम सब कुछ भूल जाएं... हम ब्लागर्स को इसी आधार पर सरकार को रोज एक पोस्ट लिखकर , ब्लागर्स मीट के ज़रिये एवम प्रेस-विज्ञप्तियां जारी करके,अपने अपने शहर में जिला   कलैक्टरों को ज्ञापन सौंप कर अपना विरोध जता देना ज़रूरी है. 
                        यदि सरकार ऐसा करती है तो  सेवा-प्रदाता के ज़रिये नकेल कसी  जायेगी ब्लागर्स की.   तय यह पाया जाता है  क़ि सर्वसाधारण को बोलने की इजाज़त एवं  अभिव्यक्ति  के लिए   प्रयुक्त प्लेटफ़ार्म न मिले  . अब आप बताएं आम ब्लॉगर कोई विकीलीक्स तो   नहीं है जो क़ि उससे भयाक्रांत रहा जावे. सरकार के मानस में यह क्यों जबकि आम ब्लॉगर सिर्फ कविता कहानी आलेख जो अखबारों,पत्र-पत्रिकाओं में भेजते हैं उसे ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहे हैं . फिर किसके  इशारों पर हो रही है यह हरकत  . सरकार को इस मामले में खुलासा करना चाहिये कि किन परिस्थियों में सरकार यह क़दम उठा रही है . मुझे वर्धा सम्मेलन की रिकमंडेशन याद आ रहीं हैं कि हिंदी ब्लागिंग के लिये एक आदर्श आचार संहिता होनी चाहिये . यह बात वास्तव में ग़ैर ज़रूरी थी. ऐसा विचार व्यक्त करने वाले तथा सरकार  यह जान ले कि क्या मौज़ूदा क़ानून से अश्लील,उत्तेज़क,गुमराह करने वाले अराजक आलेखों, प्रस्तुतियों को प्रतिबंधित आसानी से किया जा सकता है.   
ललित शर्मा
एक ओर हम ब्लागर्स हिंदी से नेट को ढंक देना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर ऐसी खबर, जी हां यह खबर निश्चित ही  हमारे एक जुट होने के मार्ग तैयार कर रही है. समय आ गया है कि सारे ब्लागर्स एक जुट होकर पुरजोर विरोध करें. ... सरकार के ऐसे अलोकतांत्रिक-प्रयास का. इस हेतु हमें प्रिंट,इलैक्ट्रानिक मीडिया से सहयोग की अपेक्षा है.  


ललित शर्मा के अनुसार :-"मध्यवर्ती संस्थाओं के टर्म का दायरा ब्लॉगर तक बढाने के पीछे तर्क यह है कि जिस तरह इंटरनेट प्रोवाईडर संस्थाएं पाठक को  इंटरनेट से जोड़ती  हैं उसी तरह ब्लॉग पर लिखे गए लेख भी पाठकों को अपने तक जोड़ते हैं। ब्लॉग स्वामी किसी के खिलाफ़ व्यक्तिगत आरोप आक्षेप वाली पोस्ट लगाता है और पाठक जब ब्लॉग पर अपमानजनक, अमर्यादित टिप्पणी करता है तो उसका जिम्मेदार ब्लॉग स्वामी ही होगा। इसके लिए ब्लॉग स्वामी को मध्यवर्ती संस्था मान कर कानून के दायरे में लाया जा रहा है।
(पूरा आलेख इधर देखिये)






कनिष्क कश्यप 
इस पोस्ट के तैयार करते समय न्यू-मीडिया-एक्सपर्ट कनिष्क कश्यप से बात हुई उनका कहना है :-"खबर ग़लत है, क्या मछलियों को समन्दर में कूदने से  रोकने का का़नून बन तो सकते है पर मछलियों को रोका नहीं जा सकता "








दिल्ली के ब्लागर खुशदीप सहगल ने अपनी दो टूक राय ज़ाहिर करते हुये कहा कि:-"जी, सायबर क़ानूनों की मज़बूती के लिये एक बिल पेश हो रहा है जिसके प्रावधानों की परिधि में ब्लाग को लाया जावेगा. जो धर्मोंमादक, भड़काऊ ब्लाग पोस्ट तथा उस पर आने वाली टिप्पणियों प्रतिबंधित करने हेतु ज़िम्मेदारी तय की जावेगी."
         सहगल जी ने आगे बताया:-"धर्माधारित विषयों पर विवादस्पद  आलेखन करने वाले ब्लागर्स तथा अभद्र टिप्पणीयों की ज़िम्मेदारी ब्लाग संचालक की ही होगी. "
        खुशदीप जी की बात से अधिक स्पष्टता मिली कि " उत्तेज़क ब्लागिंग प्रतिबंधित करने की कोशिश की जा रही है..? "
      किंतु मौज़ूदा क़ानूनों में प्रावधानों की उपलब्धता है.इन सबको रोकने के लिये. इससे सदाचारी ब्लागर्स के लेखन पर असर होगा. इस बात का विरोध होना ही चाहिये. 
इस बात पर खुशदीप जी का मत है कि :-"अवश्य होना चाहिये, किंतु हम ब्लागर्स को भी वर्जित विषयों पर लेखन गाली-गलौच भरी टिप्पणीयों से बचना ज़रूरी है." 
         

टिप्पणियाँ

vandana gupta ने कहा…
विचारणीय आलेख है…………सिर्फ़ इतना ही कहूंगी कि कोई भी काम दायरे से बाहर नही होना चाहिये फिर चाहे आलेख हो या टिप्पणियां…………और जो भी अपना दायरा भूलने की कोशिश करे उसे सज़ा मिलनी ही चाहिये मगर जहां तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है वो तो सभी को है मगर उसमे भी जब भी कोई सीमा रेखा से बाहर जाता है तो उस पर नकेल कसी ही जाती है अगर इस दिशा मे कार्य हो तब तो ठीक है मगर इस डर से कि ऐसी कोई क्रांति यहां भी शुरु ना हो जाये जैसी लीबिया मे हुयी इसलिये प्रतिबंध लगाये जायें तो गलत होगा…………आम जन अपनी बात कैसे पहुंचाये? उसके लिये तो ये एक बेहद सशक्त माध्यम है बस ध्यान इतना रखना है कि हमे अपनी बात बेहद शालीनता से कहनी है फिर कोई कैसे रोक सकता है हमे…………अगर ब्लोगिंग पर प्रतिबंध वैसे ही लगाया जाता है तो उसका विरोध किया जाना चाहिये।
बिल्कुल प्रतिरोध होना चाहिये. क्योंकि आज सत्यार्थ प्रकाश प्रकाशित ही नहीं होने दिया जाता. उसके लेखक, प्रकाशक और सम्पादक पर मुकदमे दर्ज हो जाते. आज की हालत बहुत बेहतर नहीं है.
Atul Shrivastava ने कहा…
वंदनाजी की बातों से सहमत। ब्‍लागिंग पर प्रतिबंध का विरोधहोना चाहिए। लेकिन उससे पहले ब्‍लागरों को भी मर्यादा में रहना होगा। क्‍योंकि किसी एक की गलती का खमियाजा सबको भुगतना पडता है। ब्‍लागिंग शिष्‍टाचार बने रहे तो ही ठीक रहेगा।
Swarajya karun ने कहा…
अगर कोई ऐसा जन-विरोधी क़ानून बनता है तो इसमें यह कौन तय करेगा कि ब्लागों में प्रकाशित हो रही सामग्री आपत्तिजनक है अथवा नहीं ? यह तो भारत में वर्ष १९७५ में कुर्सी पर खतरे के कारण लगे आपातकाल के प्रेस सेंसरशिप जैसा होगा.दुनिया जानती है कि इसका क्या नतीज़ा आपातकाल और प्रेस-सेंसरशिप लगाने वालों को मिला था ?
Swarajya karun ने कहा…
ब्लागिंग से ख़तरा किसे है, यह आज हर समझदार ब्लागर महसूस करने लगा है. जिन्हें अपनी बड़ी-बड़ी दुकानदारी और ठेकेदारी बंद हो जाने का अंदेशा है, जिन्हें अपने काले कारनामों के खुल जाने की आशंका है, वही लोग इसे किसी कानूनी दायरे में बाँधना चाहते हैं. वरना सच्चे दिल वालों को डर काहे का ? अभिव्यक्ति की आज़ादी ही लोकतंत्र का ऑक्सीजन है , इसे रोकना वास्तव में लोकतंत्र की हत्या के समान जघन्य अपराध होगा .
"पाठक जब ब्लॉग पर अपमानजनक, अमर्यादित टिप्पणी करता है तो उसका जिम्मेदार ब्लॉग स्वामी ही होगा"...

इस हिसाब से तो, सड़क पर दुर्घटना में मारे जाने वाले व्यक्ति की मौत के अपराध में, सड़क बनाने वाले को फांसी हुआ करेगी..

हम्म्म ...
अच्छा है. बहुत अच्छा है रे सांभा...
सारी बातें विचारणीय हैं...... इतने विस्तार से बताने का आभार ...
बहुत सी जानकारियां बिल्कुल नई हैं.... इनके बारे में सबको जानकारी होनी ज़रूरी है......
Learn By Watch ने कहा…
यदि अश्लील लेखन पर तथा धर्म के विरुद्ध लिखने पर लगाम लगाई जा रही है तो मैं इसके पक्ष में हूँ, और पूरी तरह से समर्थन करता हूँ, कुछ ब्लोगर सारी सीमा तोड़ चुके हैं, दूसरे के धर्म के बारे में इतना बुरा लिखते हैं कि कभी कभी उनको गोली मार देने का मन करता है, ऐसे लोगों पर लगाम लगानी ही पड़ेगी
Swarajya karun ने कहा…
learn by watch से पूछना चाहता हूँ कि प्रकाशित सामग्री में शील -अश्लील और धार्मिक-अधार्मिक की परिभाषा और पहचान आखिर कौन तय करेगा ? अगर किसी के भ्रष्टाचार के खिलाफ आपने लिखा तो इस बात की क्या गारंटी है कि जिसके काले कारनामों से परदा उठेगा वह उसे अश्लील करार नही देगा ? संत कबीर ने अपने समय में धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठायी थी . उन्हें भी विरोध झेलना पड़ा था . उस जमाने में ब्लॉग नहीं थे ,अगर होते तो शायद कबीर जैसे कवियों के दोहों पर पाबंदी लगाने के लिए भी क़ानून बनाने की कवायद होती .
Unknown ने कहा…
jo sarkar afjal guru ko sahi mehman aur kasab ko sahi mehman bana kar rakh sakti hai .......

wah bloggers ka kiya karagee......

jai baba banaras
सभी पुरोधाओं के सुझाव बहुत बढ़िया हैं!
प्रिन्ट मिडिया , इलेक्ट्रोनिस मिडिया का एथिक कोड है व वहां भी जब सरकार के नियम कानून लागू हैं तो ब्लाग में भी किसी न किसी सरकारी एजेन्सी का कन्ट्रोल होने में हर्ज़ क्या है,इसके द्वारा सम्भवत: घटिया और समाज को पतोन्मुख करने वालों ब्लागों को कानून के बन्धन में लाया जायेगा ।हज़ारों इन्डियन ब्लोगस हैं जो सेक्स की दुकान लगा कर बैठे हैं ,उन पर ये बन्धनकारी होगा, साफ़ सुथरे विचारों वाले ब्लाग्स में बन्धन लगाकर सरकार को कुछ नहीं हासिल होगी।जायज़ सरकारी निन्दा करने वाले अन्य मिडिया में जब सरकार लग़ाम नहीं लगा सकती तो ऐसे ब्लाग में लग़ाम को वो कैसे अदालत में जस्टीफ़ाई करेगी । जब तक ड्राफ़्ट सामने न आ जाये इस पर और टिप्पणी वाज़िब नहीं और हमें अभी या भविष्य में भी ज़रा भी फ़िक्र करने की ज़रुरत नहीं।
Khushdeep Sehgal ने कहा…
अपना विरोध तभी कारगर साबित होगा जब हम पहले अपने घर को साफ़-सुथरा रखें...ताकि फिर कोई साहित्यकार या सरकार हमारी तरफ़ उंगली न उठा सके...

जय हिंद...
हम सभी ब्लोग्गर्स ऐसे किसी भी नियमन का विरोध करते हैं. हम स्वयं अपने आचार संहिता को बनाएँ और पालन करें. जब सरकार फ़िल्म , सीरियल और अन्य माध्यमों में दिखाए जा रहे विचार-प्रवाह को नियंत्रित नहीं करती तो ब्लॉग पर नियमन का सवाल क्यों . क्या कांग्रेस को हमसे खौफ पैदा हो गया है. अगर ऐसा है तो हम इसे हिंदी ब्लॉग लेखकों की कामयाबी कहेंगे.
किलर झपाटा ने कहा…
क्यों घबरा रहे हो आप लोग फ़ालतू में। मैं हूँ ना। ही ही।

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