राज़ ठाकरे जी, सादर अभिवादन

आप के दिमाग में हिन्दी के लिए जो ज़हर भरा है उसके लिए हम आपको साफ़ तौर पर बता देना उचित समझतें हैं कि-"भारत-माता की छवि आप जैसे महानुभावों की वज़ह से विश्व में कितनी ख़राब हो रही है उसका अंदाज़ आपको नहीं है "भारत की महान धरती पर आप जैसों की नकारात्मक विचार धारा कितने दु:खद पलों को जन्म दे रही है इसका अंदाज़ आपको नहीं हैं राज जी मराठी मानस और शेष भारत के मानस में आप कोई फर्क कैसे कर सकतें हैं ? यह हक आपको किस ने दिया ये आम भारतीय सोच रहा है.साफ़ तौर पर आप को समझना ज़रूरी है कि भारत की अखण्डता पे किसी की भी उद्दंडता का दीर्घ प्रभाव नहीं होता,सम्पूर्ण सकारात्मकता की पुख्ता बुनियाद पर बनी "भारतीयता" किसी भी एक भाषा,जाति,रंग,वर्ण,से सदा ही अप्रभावित रहती है ,
आप जिस देश में रहतें हैं वो भारत है जो शिवाजी का देश है जो लक्ष्मी बाई ,दुर्गावती,तुलसी,कबीर,मीरा का देश है यहाँ का गांधी,आज भी विश्व को एक चिंतन देता है, यहाँ का दीनदयाल आज भी अन्त्योदय का माइल-स्टोन बन गया,यहाँ गालिब,दादू,ज्ञानेश्वर,नानक जैसों ने बिना ख़बर रटाऊ चैनल'स के सामने आए गाँव गाँव तक अंगूठा छाप किसान,मजूरों के दिल में ज़गह बना ली .............ये भारत ऐसे सकारात्मक ऊर्जा वानों का भारत है न कि किसी एक प्रदेश,यथा तमिलनाडु, महाराष्ट्र,बिहार,गुजरात,उत्तरांचल,आदि ,प्रदेशों का ..............मित्र मेरा भारत आपकी भाषाई राजनीति का शिकार हो यह कोई भी कब तक और कैसे सहेगा . आपको ईश्वर साद-बुद्धि दे , आप हिन्दी भाषियों से जितना विद्वेष रूपी ज़हर रखना चाहें रखें भारतीय औदार्य आपको एक सीमा तक क्षमा करेगा वरना इस देश के संविधान में सारी व्यवस्थाएं हैं , जिसने आप को अपनी वाणी से विचार व्यक्त करने की अनुमति दी है न कि ज़हर उगलने की, फ़िर आप तो महाराष्ट्र के विद्वान वक्ता हैं ये जानते ही होंगें कि ज़हर किस प्राणी की किस ग्रंथि में संचित रहता है . और कब तक "हाँ,तब तक संचित रहता है जब तक किसी यायावर सपेरे की नज़र उस जीव पर नहीं जाती "


टिप्पणियाँ

रंजना ने कहा…
बहुत ही सही कहा आपने.काश आमलोगों के मन की यह भावना भाषा,धर्म और जाति के नाम पर गन्दी राजनीती करने वालों के कानो तक पहुँच पाती........
रंजना जी
आपके साहस का आभार
मुझे लगा की कोई ब्लॉगर मुझसे सहमत नही हैं
बवाल ने कहा…
आप यदि उस दुष्टराज ठाकरे को आप आप कह कर अभिवादन करेंगे तो कौन ब्लॉगर भला आपसे सहमत होगा मुकुलजी। हा हा।
बात आपने सही कही जो ज़ाहिर तौर पर संस्कारधानी की गरिमा से ओतप्रोत है। आभार।
इस्मत ज़ैदी ने कहा…
adarneey mukul ji ye lekh purana hai lekin main yahan der se pahunch payi ,koi bat nahin sahi jagah pahunchi ,koi blogger (kisi karanvash)comment na dena chahe alag bat hai parantu sahmat na hon aisa nahin ,aj jab hamen ekjut hone ki zaroorat hai ham in bakar ke vivadon men pad kar apne hi desh ka nuqsan kar rahe hain .
badhiya lekh hai badhai ho
kshma chahti hoon lekin bawal ji ki baat se main sahmat nahin hoon ,agar ham raj ji se unhin ki bhasha men bat karenge to hamare beech antar hi kahan rah jayega ,apne sahi bhasha ka istemal kiya hai.

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